विवेक शून्य सदाचार तो वृक्षों में भी है परन्तु उन्हें कोई मानवता नहीं मिलती, क्योकि वे बेचारे जड़ता के दोष में आबद्ध है | संग्रह रहित बहुत से पशु भी होते है , परन्तु उन बेचारो को कोई साम्यवादी या परमहंस नहीं कहता | पराये बनाये घर में बहुत से पशु रह सकते है , पर उन्हें कोई विरक्त नहीं कहता | इससे यह सिद्ध हुआ कि विवेकपूर्वक उदारता एवं त्याग से ही मानव "मानव" होता है | - मानव की मांग पेज ११