Monday, 14 March 2011
Friday, 4 March 2011
Swami Sharnanand ji
इसलिये भाई मेरे , प्रभु मेरे है , पर मन मेरा नहीं है , तन मेरा नहीं है , प्राण मेरे नहीं है, वास्तु मेरी नहीं है . हाँ , एक बात अवश्य है कि उस प्रभु ने जो वस्तु मुझे दी है , योग्यता दी है , समर्थ दी है - वह इस ढंग से दी है कि ऐसा मालूम होता ही के मानो , मेरी ही है | प्रभु ने मुझ पर इतना विश्वास किया है , मुझे ऐसा समझा है कि मै उसकी दी हुई वस्तु , सामर्थ , योग्यता का उपयोग उसके दिए हुए विवेक रुपी विधान के प्रकाश मै ही करूंगा - प्रभु ने प्राणिमात्र की ईमानदारी पर इतना विश्वास किया है -
संतवाणी 6 पेज ५९
मानव सेवा संघ प्रकाशन
वृन्दावन - 281121
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